ग़ज़ल
ग़ज़ल
रखना बस उससे याराना, अच्छा लगता है।
मिलना उससे बना बहाना,अच्छा लगता है।।
रंज-ओ-गम हो ,मायूसी हो ,या बेकद्री हो,
मिला इश्क में हर नज़राना,अच्छा लगता है।
छूकर उसे हवा गुज़रे तो,ये दिल रश्क करे ,
पर उसका पल्लू सरकाना,अच्छा लगता है।
जाम सुराही साकीबाला, उसमें दिखते हैं,
इसीलिए मुझको मयखाना, अच्छा लगता है।
रोज़ ख्वाब में आकर वो,दिल को बहलाती,
रात ढले जल्दी सो जाना ,अच्छा लगता है।
नाम साथ में उसके मेरा, जोड़ा दुनिया ने,
मुझको भी झूठा अफसाना,अच्छा लगता है।
मिला हाथ से हाथ लकीरें,चमकें किस्मत की,
हुस्न परी ऐसी मिल जाना,अच्छा लगता है।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय