#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
■ ये प्रणय की दास्तां है…।।
【प्रणय प्रभात】
◆जिस्म पूरा नातवाँ है।
और पथराई ज़ुबाँ है।।
◆रात-दिन दम घोंटता जो।
घर के चूल्हे का धुआँ है।।
◆बोल हमदर्दी भरे हों।
उनमें कुछ तल्ख़ी निहाँ है।।
◆भीड़ बेशक़ साथ में है।
उसमें पर इन्सां कहाँ है??
◆अब पशेमाँ ज़िंदगी है।
अब सरापा रायगाँ है।।
◆ चार-सू मंज़िल हमारी।
कल वहाँ थे अब यहाँ है।।
◆ आसमां अपना है सारा।
बस उदू बर्के-तपाँ है।।
◆ कल तलक मासूम थी जो।
आज वो ख़्वाविष जवाँ है।।
◆ हर नफ़स में ज़िंदगी है।
हर क़दम पे इम्तिहाँ है।।
◆बस ग़ज़ल मत मानिएगा।
ये “प्रणय” की दास्ताँ है।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
■ #कठिन_शब्दार्थ
नातवाँ- अशक्त
तल्ख़ी- कड़वाहट
पशेमाँ- लज्जित
सरापा- पूरा शरीर
रायगां- बेकार
चार-सू- चारों ओर
उदू- शत्रु
बर्के-तपाँ- बिजली
नफ़स- साँस, पल
दास्तां- कहानी