#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
■ वक़्त तमाचे मार रहा है।।
【प्रणय प्रभात】
◆ मरे जा रहे थे गौहर पर लालों पर।
लटके हैं तस्वीर बने दीवालों पर।।
◆कल तक जिसको मुट्ठी में बतलाते थे।
वक़्त तमाचे मार रहा है गालों पर।।
◆पीर पराई हाल समझ आ जाएगी।
नमक लगा कर देखो अपने छालों पर।।
◆पानी की जगहा सब कीचड़ ले आए।
दरिया को था बड़ा भरोसा नालों पर।।
◆गली-गली में जोहरी कहाँ भटकते हैं?
एतबार क्यों करते हो नक़्क़ालों पर।।
◆ख़ुदा बचाए एतबार क्या खाक करें।
जंग में जा कर पीठ दिखाने वालों पर।।
◆ हम इंसानी करतूतों के शाहिद हैं।
कोई हैरत नहीं हमें भूचालों पर।।
◆ ये ना होतीं तो वो कब का मिट जाता।
टिका भेड़ियापन भेड़ों की खालों पर।।
◆ वक़्त भरोसा कैसे कर ले क़ौलों पे?
इसने सर लटके देखे हैं भालों पर।।
◆ उनकी सेहत पर पड़ता है फ़र्क़ भला?
तंज़ अंधेरा करता रहे उजालों पर।।
◆ चालाकी का हश्र समझ आ जाएगा।
नज़र गढ़ाए रख मकड़ी के जालों पर।।
◆ कल तक टेबल पे रह के इतराते थे।
महरबान है दीमक आज रिसालों पर।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)