#ग़ज़ल-
#ग़ज़ल-
■ अपनी ही परछाई से…!!
【प्रणय प्रभात】
● अक़्सर बैठ के बतियाते हैं हम अपनी तन्हाई से।
यादों के मोती लाते हैं, माज़ी की गहराई से।।
● धूप कड़ी थी उस सहरा में कोई भी हमराह न था।
हमनें अपना मन बहलाया अपनी ही परछाई से।।
● ये है इनायत सिर्फ़ उसी की ग़लती अपनी जान गए।
आज गुनाहों पर शैदा हैं तौबा यार भलाई से।।
● अहले-दुनिया उससे तोहफ़े पा कर ख़ूब निहाल हुए।
हमको केवल ज़ख़्म मिले हैं पग-पग पे हरजाई से।।
● मन की आँखों से देखें तो संग भी इक आईना है।
आईने रोशन होते हैं आंखों की बीनाई से।।
● हम झूठे हैं तो झूठे हैं लफ़्ज़ हमारे ये सच है।
हम सच्चे हैं तो वाकिफ़ हैं लफ़्ज़ों की सच्चाई से।।
● ना जाने कितने दीवाने इसके दम पर जीत गए।
क्या डरना है क्यूं डरना है दुनिया में रुसवाई से??
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)