#ग़ज़ल-
#ग़ज़ल-
■ अंधेरों में सफ़र के वास्ते।।
【प्रणय प्रभात】
– इससे बढ़कर और क्या होगा बशर के वास्ते।
एक दिलकश सा नज़ारा हो नज़र के वास्ते।।
– याद का बस एक जुगनू राह दिखलाता रहे।
ये ज़रूरी है अंधेरों में सफ़र के वास्ते।।
– ईंट पत्थर खिड़कियों या चंद रिश्तों के सिवाय।
और भी कुछ ख़ूबियां होती हैं घर के वास्ते।।
– अश्क़ के क़तरों को मैं मोती बना के देख लूं।
एक दामन चाहिए दीदा-ए-तर के वास्ते।।
– एक दिन में ताज की तामीर हो मुमकिन नहीं।
सब्र पहली शर्त है इल्मो-हुनर के वास्ते।।
– एक सूरज ढल गया ये सोच के हैरां न हो।
एक सूरज फिर उगेगा कल सहर के वास्ते।।
– सच ज़ुबां ने क्या कहा हक़ पे क़दम क्या बढ़ गए।
हर तरफ ख़ंजर थे मेरे एक सर के वास्ते।।
– इक ग़ज़ल अल्फ़ाज़ या अहसास की बंदिश नहीं।
ख़ूने-दिल भी चाहिए इसमें बहर के वास्ते।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)