#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
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【प्रणय प्रभात】
* मैं हूं तुझ में या तू है बस मुझ में?
मैं क़फ़स में हूं या क़फ़स मुझ में??
*नूर, ख़ुशबू, छुअन सभी उस की।
जो समाया है हर नफ़स मुझ में।।
*गर्म सांसों से ख़्वाहिशें दहकीं।
यूं तो संदल, ग़ुलाब, ख़स मुझ में।।
*ले गया सब मेरा चुरा कर वो।
रह गया जो कई बरस मुझ में।।
*मुझ में मज़लूमो-मुजरिमों, मुंसिफ।
रोज़ छिड़ती है एक बहस मुझ में।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)