#ग़ज़ल-
#ग़ज़ल-
■ ज़मीं पे पड़ी रह गई।।
【प्रणय प्रभात】
– रोशनी क्या गई तीरग़ी रह गई।
महफ़िलों में फ़क़त ख़ामुशी रह गई।।
– ये कहानी जो कल तक कही ना गई।
देखिए आज फिर अनकही रह गई।।
– एक बादल था बरसे बिना चल दिया।
रूह से लब तलक तश्नगी रह गई।।
– ज़िंदगी और दुनिया का मानी यही।
रिन्द जाते रहे मयकशी रह गई।।
– तर्क़ दोनों तरफ से तआल्लुक़ हुए।
सोच हैरत में थी सोचती रह गई।।
– दोस्त का हाथ दुश्मन के हाथों में था।
दोस्ती सर झुकाए खड़ी रह गई।।
– फूल कुचला गया रात क़दमों तले।
एक टहनी ज़मीं पे पड़ी रह गई।।
– उसको आना न था और आया नहीं।
मोड़ पे टकटकी बस लगी रह गई।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)