#ग़ज़ल-
#ग़ज़ल-
■ मगर कैसे वो बरसातें भुला दें??
【प्रणय प्रभात】
● गुज़िश्ता दौर की बटन भुला दें?
मिले ज़ख़्मों की सौगातें भुला दें??
● नहीं भीगे हों कपड़े अब बदन पर।
मगर कैसे वो बरसातें भुला दें??
● हथेली की लकीरें बन चुकी हैं।
भला कैसे सभी घातें भुला दें??
● हज़ारों ख़्वाब जिनमें जग न पाए।
कहो किस तरहा वो रातें भुला दें??
● हमें डोली डराती है अभी तक।
भले ही आप बारातें भुला दें।।
● भुला दें क्यूं न झूठी ज़िंदगी को?
अगर वो सब मुलाकातें भुला दें।।
● सुधरने में भलाई ना दिखे तो।
मज़े से वक़्त की लातें भुला दें।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)