ग़ज़ल
*तू मेरी मंजिले मकसूद हमेशा की तरह।
दिल में मेरे है उछल कूद हमेशा की तरह।
निगाहे नाज़ से फिर देख लिया जब उसने
जल उठा फिर से वह बारूद हमेशा की तरह।
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देखता हूं जब किसी सम्त उठाकर नजरें।
हर जगह मिलते हो मौजूद हमेशा को तरह।
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बिना मतलब कोई मिलता ही नहीं है अब तो।
जो भी मिलता है वह बा सूद हमेशा की तरह।
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आज के दौर की माएं अब फिटनेस खातिर।
अब पिलाती नही है दूध हमेशा की तरह।
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किस तरह खुद को बचातीं वह मणिपुर वासी।
सारे वहशी थे कुल मौजूद हमेशा की तरह।
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सगीर रहते हैं सदा अपने दायरे में हम।
खुद में ही रहते हैं महदूद हमेशा की तरह!*