#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
■ दरबार मत कहिए…!!
【प्रणय प्रभात】
● ख़ुदारा यार मत कहिए।
हवस को प्यार मत कहिए।।
● जो पहली बार बोला है।
वो अगली बार मत कहिए।।
● बुज़ुर्गों का सहारा है।
इसे दीवार मत कहिए।।
● हों पैरोकार गर सच के।
गुलों को ख़ार मत कहिए।।
● सियासत की ज़ुराबें हैं।
इन्हें अख़बार मत कहिए।।
● फ़क़त झूठों की मंडी है।
इसे दरबार मत कहिए।।
● उलझ के जो सुलझ जाए।
उसे तक़रार मत कहिए।।
● बहुत गुमराह हैं राहें।
इन्हें हमवार मत कहिए।।
● कला बेचे, क़लम बेचे।
उसे फ़नकार मत कहिए।।
● तमाशाई हैं सब रिश्ते।
इन्हें ग़मख़्वार मत कहिए।।
● ग़मों की दास्तां है ये।
इसे त्यौहार मत कहिए।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)