#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
■ पैरोल पर है आज से
【प्रणय प्रभात】
◆ शक़ लिबासी झोल पर है आज से।
हर नज़र कश्कोल पर है आज से।।
◆ मौत के बैरक में कल तक बंद थी।
ज़िन्दगी पैरोल पर है आज से।।
◆ जिस्म का तकिया कुचैला हो चुका।
आबरू बस खोल पर है आज से।।
◆ जो मिला बदले में उसके क्या गया।
फ़ैसला इस तोल पर है आज से।।
◆ हर इशारा आतिशी आज़ाद है।
रोक केवल बोल पर है आज से।।
◆ इंतिख़ाबी साल है बस इसलिए।
हर नज़र हर पोल पर है आज से।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)