ग़ज़ल
सुहाना जब कभी मौसम रहेगा
ख़ुशी का हर तरफ़ आलम रहेगा।
हवा छूकर फ़िज़ा को तर करेगी
वबा का डर न कोई ग़म रहेगा।
फ़िकर को छोड़कर कसरत करे जो,
उसी के बाजुओं में दम रहेगा।
किसी सय्याद को तुम ताज़ दे दो
उसे वह आशियाना कम रहेगा।
बुरे हालात में जो चल रहा हो
मदद की आस में हरदम रहेगा |