ग़ज़ल, प्रतियोगिता
गज़ल
कब तलक दिखती रहेगी सरहदों पे रंजिशें.
कब तलक नफ़रत चलेगी कब तलक ये ताबिशें
हो रही है क्यों तबाही स्वर्ग से कश्मीर मे .
रोक लो पागल हवाओं को लगाकर बंदिशें.
आजकल आने लगा है छत पे मेरी चाँद वो.
है यकी मुझको बढेंगी इश्क़ की गुन्जाइशें.
मार दी चाहत सभी खुद के लिये कुछ न किया
कर रहे पूरी मगर औलाद की फ़रमाइशे.
जिंदगी फानी है ये जब जान लोगे तुम मियां
तब नहीं होगे परेशां देखकर ये गर्दिशें
गर्म है माहौल देखो उलझनों का दौर है .
हर तरफ इक आग जैसे हर तरफ़ है साजिशें
कौन है जिसको मरातिब की तलब न हो मनी
सब को होती है यहाँ पर मंज़िलो की ख्वाहिशें.
कापीराइट @मनीषा जोशी मनी