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9 Apr 2023 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल

वही है हर जगह खाली कोई कमरा नहीं रहता
ख़ुदा वो शै है जिससे कोई भी पर्दा नहीं रहता

कभी दिल, जाँ, ख़ुशी तो ज़िंदगी भी छीन लेती है
कहा किसने मुहब्बत में कोई ख़र्चा नहीं रहता

नहीं गर लूटता गुलशन हमारा बाग़बाँ तो फिर
न मुरझाती कली कोई चमन झुलसा नहीं रहता

तसल्ली है हर इक सूरत में वरना इस ज़माने में
कोई इंसान दुनिया में कभी जिंदा नही रहता

झुलसती ज़िंदगी मेरी ग़मों की आग में हर पल
मेरी माँ की दुआओं का अगर साया नहीं रहता

हमारे देश की मिट्टी,शज़र, दरिया निराले है
अक़ीदा ही है जो पत्थर भी पत्थर सा नहीं रहता

मरासिम हैं मतलबी इस ज़माने में ये देखा है
बिना पैसों के ऐ प्रीतम कोई रिश्ता नहीं रहता

प्रीतम श्रावस्तवी

Language: Hindi
243 Views
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