ग़ज़ल
तेरे बिना तो अपना घर भी मुझको जंगल लगता है।
ऐसे आंख बरसती है सावन का बादल लगता है।
सारे दुख खो जाते हैं सारी खुशियां मिल जाती है।
सारी खुशियों में ही सिमटा मां का आंचल लगता है।
जिस पर पत्थर चलता है उसकी तुम हमराही हो।
जिसको तुमने चाहा है वो कितना पागल लगता है।
सुर्ख गुलाबो जैसा तेरा चेहरा मुझको लगता है।
तेरी आंखें हंसती है जब उस में काजल लगता है।