ग़ज़ल
ग़ज़ल वो खुश नसीब है-
जो उनके ही करीब है।
वो कितना खुशनसीब है।।
वो रिश्ता ही अजीब है।
जो दिल के करीब है।।
दिल से ही जो अमीर है।
दौलत से मगर गरीब है।।
सपनों में भी न मिल सके।
वो यार बदनसीब है।।
वो दिल का मरीज़ है।
कमसिन बड़ा अजीब है।।
क्यों ऐब गिनाये मेरे।
दोस्त कहूं या रकीब है।।
किसको मिलेगा क्या यहां।
अपना-अपना नसीब है।।
सर पे उनका साया है।
‘राना’ तो खुशनसीब है।।
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© राजीव नामदेव “राना लिधौरी”,टीकमगढ़
संपादक-“आकांक्षा” हिंदी पत्रिका
संपादक- ‘अनुश्रुति’ बुंदेली पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
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*( राना का नज़राना (ग़ज़ल संग्रह-2015)- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ के ग़ज़ल-97 पेज-105 से साभार