ग़ज़ल
ज़ख़्म खाकर भी मुस्कुराना है
और हँस हँस के ग़म उठाना है
ये जो दुनिया है एक स्टेशन
चन्द लम्हों का ये ठिकाना है
छीन सकता है कौन किस्मत से
लिख गया जितना आब-ओ-दाना है
सिर्फ़ मैं या तुम्हीं नहीं यारो
मौत का हर कोई निशाना है
छूट जाएँगे पीछे सब रिश्ते
तुझको तन्हा वहाँ पे जाना है
सर उठाती हैं ख़्वाहिशें जो मेरी
इनको सूली मुझे चढ़ाना है
मत परिंदों को क़ैद कर प्रीतम
आसमां छूने इनको जाना है
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती (उ०प्र०)