ग़ज़ल
ग़ज़ल
उनके दिल से उतरना बाकी है
यानी ग़म को निखरना बाक़ी है
दिल तो कब का वो तोड़ बैठे हैं
सिर्फ़ टुकड़े बिखरना बाक़ी है
रुक जा इक पल तू ऐ क़ज़ा मेरी
ज़िन्दगी को संवरना बाक़ी है
जल गईं दिल की हसरतें मेरी
अब तो बस आह भरना बाक़ी है
ज़िन्दगी मौत से जहाँ मिलती
ऐसी हद से गुज़रना बाक़ी है
होके रुसवा जहां में अब ख़ुद से
चाक़ दामन ये करना बाक़ी है
छा गई मौत सिर पे ऐ प्रीतम
दिल की धड़कन ठहरना बाक़ी है
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती (उ०प्र०)