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18 Oct 2022 · 1 min read

ग़ज़ल

वो भी कहते रहे चुप्पियां छोड़ दो
शर्त मेरी भी थी तल्खियां छोड़ दो

ग़ैर वाजिब भी तुम दाम लेते रहो
बात ये मान लो अर्थियां छोड़ दो

ठंड में हाथ सेको मगर ध्यान से
जल न जाएं कहीं झुग्गियां छोड़ दो

तुम तो ममता की खुद एक पहचान हो
पेट में मारना बच्चियां छोड़ दो

धूप का एक टुकड़ा पुकारे तुम्हें,
बंद जो, वो खुली खिड़कियां छोड़ दो।

सच जो बोला तो झट काट ली है ज़ुबाँ,
और फिर कह रहे, सिसकियां छोड़ दो।।

खामखां बिजलियों पर न तुहमत लगे,
मत सुलगता हुआ आशियाँ छोड़ दो।

और भी इसमें अफसाने जुड़ने कई,
बस अधूरी मेरी दास्ताँ छोड़ दो।

रश्मि लहर

Language: Hindi
1 Like · 432 Views
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