ग़ज़ल
ग़ज़ल ——
जब किताबों के पन्ने पलटने लगे ।
बंद पिंजरों के ताइर चहकने लगे॥
उनसे महफ़िल में नज़रें ये क्या मिल गईं
प्यार के गीत दिल से निकलने लगे ।।
खो गयी थी हँसी जाने कब की कहाँ,
आपसे मिल के हम फिर से हँसने लगे ।।
बाद अरसे के फिर आपको देखकर,
इन निगाहों में जुगनू चमकने लगे ।।
तुमसे बिछड़ी तो “ममता”बिखर ही गई,
फूल भी मुझको नश्तर से चुभने लगे ।।
डाॅ0 ममता सिंह
मुरादाबाद
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