ग़ज़ल
ग़ज़ल
नए दौर का है नया ये फसाना।
सभी चाहते हैं बदन को दिखाना।।
नहीं रिंद ने पी नशा चढ़ गया है,
शुरू हो गए हैं कदम लड़खड़ाना।
यही काम करती रही है सियासत,
जलाकर पुनः झोपड़ी को बनाना।
हुआ हादसा तो सुनाई दिया है,
दुखी हूँ बहुत, राग वर्षों पुराना।
भरें जख्म कैसे वहाँ बेबसी के,
जहाँ हुक्मरानी चले शायराना।
ग़ज़ल गीत कविता हुए हैं पुराने,
सुनो चुटकुले बैठ ताली बजाना।
वही काव्य के सब मठाधीश देखे,
न आया जिन्हें है कभी तुक मिलाना।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय