ग़ज़ल होती है।
अश्क आंखों में जो आए तो, ग़ज़ल होती है….
मेरी सांसों में तू छाए तो, ग़ज़ल होती है।
लफ़्ज़ पर दस्तरस कइयों को है मगर जानाँ।
आह,मिसरे में सजाए, तो ग़ज़ल होती है।
जिसको पाने की तसव्वुर भी है इक नादानी
उसपे जो खुद को लुटाए तो ग़ज़ल होती है।
ख़्वाब रंगीन हो आंखों में चमक ले आए
फिर से सब खाक हो जाए तो ग़ज़ल होती है।
लाख तूफ़ान से बचकर भी खुश नहीं है जो
डूब साहिल पे वो जाए तो ग़ज़ल होती है।
इक तरफ नाद हो शहनाई हो मेंहदी की महक
शाम शबनम को सताए तो ग़ज़ल होती है।
पा लो मंज़िल तो आरज़ू ए फ़लक होती है।
उम्र राहों में बिताए तो ग़ज़ल होती है।
आजकल दौर नया है कि दिल्लगी कर लो
इश्क़ में जान से जाए तो ग़ज़ल होती है।
एक अशफ़ाक ने चाहा तो पी लिया जीभर..
मयकशी होश दिलाए तो ग़ज़ल होती है।
दीपक झा रुद्रा