ग़ज़ल-हलाहल से भरे हैं ज़ाम मेरे
हलाहल से भरे हैं ज़ाम मेरे
करो अमृत इन्हें घनश्याम मेरे
बिछाये नज़रें हम राहों में बैठे
कभी तो आएंगे श्रीराम मेरे
हुए कपड़े सभी नीलाम मेरे
लिखी ऐसी वसीयत नाम मेरे
अमर है कौन मरना है सभी को
रखेंगे ज़िंदा मुझको काम मेरे
जो मैंने मिलके तेरे साथ देखें
सभी सपने हुए नाकाम मेरे
मुहब्बत है सलीक़ा है अदब है
मग़र कम भी नहीं है दाम मेरे
है ज़ारी कोशिशें तो ‘कल्प’ मेरी
दिखेंगे एक दिन परिणाम मेरे
✍ अरविंद राजपूत ‘कल्प’