ग़ज़ल – संदीप ठाकुर
ज़िंदगी का भरोसा क्या कब ख़त्म है
आँख झपकी ज़रा और सब ख़त्म है
छोड़ आदत सफ़र की चलेगा कहां
आ गईं मंज़िलें राह अब ख़त्म है
फिल्मी किरदार हूं जानता हूँ मिरा
रोल कब से शुरू और कब ख़त्म है
आख़िरी काँल भी काट दी कह के ये
अब मिरे आप के बीच सब ख़त्म है
मैंने नोटिस किया है कई शाम से
जाम सिगरेट कश की तलब ख़त्म है
संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur