ग़ज़ल –बनी शख़्सियत को कोई नाम-सा दो।
ग़ज़ल
बह्र: 122 122 122 122
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
काफ़िया : आ
रदीफ़ : दो
यहीं मन भरा ख्याल आते टिका सा
बनी शख़्सियत को कोई नाम-सा दो।
भूखा पेट भरदे सुने बात मनकी
घिरा भॅवर में जो बड़ा काम सा दो.
नफरत मिटे दिल में भरी हो सबके
शक्ल मेल का ख़ोज़ दाम सा दो।
हो सुरक्षित सभी बेटियों कायदों से
ले कोई कवच सोच थाम सा दो।
हुनर कैद हैं कितने दीवारों बनी में।
उन्हें बगावत को तोल शाम दो ।
बिगडी मेरी बना दे समा मुश्किल भरा,
जीवन की ये रीत रोज़ जाम सा दो |
किया याद इरादे भला क्या मिला जो
खरे बोल बन खुशियो नाम सा दो।
स्वरचित -रेखा मोहन पंजाब