ग़ज़ल:-तुम्हारी नज़र
दोस्तों,
एक ताजा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों की नज़र,,,!!
ग़ज़ल
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चाहता हूँ कि तेरा मुझ पर असर हो,
हर हरकत पर मेरी,तुम्हारी नज़र हो।
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राह भटक जाऊँ मैं ये तो मुमकिन है,
मैं संभल सकूँ, तुम्हारी रहमत गर हो।
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शोखियाँ,मस्तियाँ जनाब हुई बहुत ये
रोशन हो नाम मेरा सब को ख़बर हो।
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ये सितारे,चाँद सब रोशन है सूरज से,
चाहत है सहरा में हरा भरा शज़र हो।
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कब रुकेगा, इंसान-ओ-क़ुदरते-नबर्द,
आरजू है मेरी खुश शाम-ओ-सहर हो।
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ये दहर मेरी हसीं बहुत है शायर “जैदि”,
आ कर देखो, चाहे गाँव-ओ-शहर हो।
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मायने:-
सहरा:-रेगिस्तान
शज़र:-वृक्ष
इंसान-ओ-क़ुदरते-नबर्द:-मनुष्य और प्रकृति का युद्ध
आरजू:-इच्छा
शाम-ओ-सहर:-शाम और सुबहदहर:-दुनिया
गाँव-ओ-शहर:-गाँव और शहर
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”