#ग़ज़ल / #कुछ_दिन
#ग़ज़ल
■ अस्मत ख़ुद तय कर बैठी है…!
【प्रणय प्रभात】
★ कुछ दिन जीवन जी के देखो छोड़ो लोभ कमाई का।
गाँव बुलाता है आ जाओ मौसम है अमराई का।।
★ टूटा बाप दुआ करता है बेटे को कुछ अक़्ल मिले।
उस पागल को चर्राया है शौक़ बहुत ठकुराई का।।
★ अब केवल नूराकुश्ती है तुमको कहाँ मयस्सर वो।
जो दंगल हमने देखा था आलम का मीनाई का।।
★ बेमतलब बदनाम नहीं है बस्ती आज सियासत की।
अस्मत ख़ुद तय कर बैठी है सौदा नथ-उतराई का।।
★ अपने ज़ख़्मों की लज़्ज़त पर बतला इतराएं कैसे?
हमको स्वाद पता है प्यारे जग में पीर पराई का।।
★ यहाँ तख़त पर चढ़ी खड़ाऊ राज चला के दिखा गई।
पता नहीं किसने सिखलाया, रिज़्क़ हड़पना भाई का।।
★ बेमतलब का शोर मचा के अपनी पोल दिखाओ मत।
सुनो नगाड़ों! तुमसे इतना कहना है शहनाई का।।
★ सोच के देखो एक कुए सा दिल दरिया बन जाए तो।
कौन लगा सकता है बोलो अंदाज़ा गहराई का।
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