ग़ज़ल(उनकी नज़रों से ख़ुद को बचाना पड़ा)
ग़ज़ल
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उम्र भर हुक्म उनका बजाना पड़ा
प्यार का मोल ऐसे चुकाना पड़ा
याद आयी बहुत वो हसीं ज़िन्दगी
उनकी गलियों से जब -जब भी जाना पड़ा
टूटना ही यक़ीनन है उस शख़्स को
जिसके पीछे ये सारा ज़माना पड़ा
वक़्त ने कर दिया मुझको मजबूर तो
आरज़ू का दिया ख़ुद बुझाना पड़ा
दिल में उठ जाये कोई न जज़्बात फिर
उनकी नज़रों से ख़ुद को बचाना पड़ा
हौंसला हमने जब से किया ‘रागिनी ‘।
नाख़ुदा को भी फिर सर झुकाना पड़ा ।।
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रागिनी स्वर्णकार(शर्मा )
इंदौर