गले लगाने के लिए तू आ
मैं थी कभी सहाराओं में उड़ती हुई तितली सी
मेरे पंख अब कट गए गले लगाने के लिए तू आ
जिस चाॅंद के अक्स में हर रात दिखता है मुझे तू
उस चाॅंद ही को चंद्र ग्रहण लगाने के लिए तू आ
~ सिद्धार्थ
मैं थी कभी सहाराओं में उड़ती हुई तितली सी
मेरे पंख अब कट गए गले लगाने के लिए तू आ
जिस चाॅंद के अक्स में हर रात दिखता है मुझे तू
उस चाॅंद ही को चंद्र ग्रहण लगाने के लिए तू आ
~ सिद्धार्थ