गले मिले
ख़्वाब बस ख़्वाब ही रह गया, ये कैसे सिलसिले मिले।
जब भी मिले तो लोगों के दरम्यान , फ़ासले मिले।
बरसो की तमन्ना है कि जब भी वो मिले,
बड़े प्यार से वो मुझसे , हँस के गले मिले।
– सिद्धार्थ गोरखपुरी
ख़्वाब बस ख़्वाब ही रह गया, ये कैसे सिलसिले मिले।
जब भी मिले तो लोगों के दरम्यान , फ़ासले मिले।
बरसो की तमन्ना है कि जब भी वो मिले,
बड़े प्यार से वो मुझसे , हँस के गले मिले।
– सिद्धार्थ गोरखपुरी