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3 Apr 2022 · 4 min read

गलत कौन

भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी आम लोगों के बीच अहिंसा का प्रचार करते थे। महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि जब कोई आपको थप्पड़ मारता है तो आप जवाबी कार्रवाई करने के बजाय आप अपना दूसरा गाल भी आगे कर दें। महात्मा गांधी प्रत्येक के भीतर वास करने वाले ईश्वर में दृढ़ता से विश्वास करते थे। उनका मानना था यदि आप अपने स्वयं के अहिंसक विश्वासों में विश्वास करते हैं तो आप अपने विरोधी को मित्र में बदल सकते हैं।

उनकी सत्य और अहिंसा की वाही नीति थी, जिसने पूरी भारतीय आबादी को झकझोर कर रख दिया और अंततः उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के आन्दोलन का नेतृत्व किया। भगवान बुद्ध और गांधी जी नक्शे कदम पर चलना आज भी प्रासंगिक है? क्या दयालु और करुणावान बनकर आज भी किया जा सकता है ?

गौतम बुद्ध ने दिखाया कि कैसे प्रेम, दया और अहिंसा का मार्ग किसी व्यक्ति के हृदय को बदल सकता है। अंगुलिमाल एक क्रूर डाकू था। वह घने जंगल में रहता था और सभी आने जाने वालों को आतंकित किया करता था। वह अपने वन क्षेत्र में आने वाले सभी लोगों को लूटता था, और उन्हें मारकर उनकी उंगली काटकर माला में डाल देता था। उसके भय से लोगों ने उस क्षेत्र में यात्रा करना बंद कर दिया था ।

जब भगवान बुद्ध ने यह सुना तो उन्होंने उस वन में जाने का निश्चय किया जहां अंगुलिमाल ठहरा हुआ था । उनके सभी शिष्यों ने उन्हें उस क्षेत्र में प्रवेश करने से रोकने की कोशिश की जहां अंगुलिमाल रहता था , लेकिन बुद्ध ने उनकी बात नहीं मानी और जंगल के उस क्षेत्र में आगे बढ़ते रहे जहाँ पे अंगुलिमाल रहता था ।

जब अंगुलिमाल गौतम बुद्ध से मिला तो वो गौतम बुद्ध के व्यक्तित्व से निकले प्रेम और स्नेह की आभा से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। उनकी मात्र उपस्थिति से अंगुलिमाल का हृदय बदल गया और उसने न केवल गौतम बुद्ध को नमन किया, बल्कि अपनी मृत्यु तक बुद्ध द्वारा सुझाए गए करुणा और प्रेम के मार्ग का अनुसरण किया।

महात्मा गांधी ने अपने पूरे जीवन में न केवल अहिंसा, प्रेम और करुणा का उपदेश दिया, बल्कि वे इसके जीवंत उदाहरण भी बने। समस्या यह है कि बुद्ध या गांधी द्वारा सुझाया गया मार्ग प्रशंसनीय तो है, लेकिन इसे अपने जीवन में अमल में लाना अत्यंत कठिन है।

एक सामान्य व्यक्ति के पास उतनी आध्यात्मिक ऊंचाई नहीं होती जितनी कि बुद्ध या गांधी की थी। उनमें एक अलग आभा थी। उनकी मौजूदगी ही किसी का भी दिल बदलने के लिए काफी थी। अहिंसा का मार्ग बुद्ध या गांधी जैसे व्यक्तियों पर लागू हो सकता है। लेकिन आम व्यक्ति के लिए क्या रास्ता है?

स्वामी रामकृष्ण परमहंस अपने शिष्यों की आध्यात्मिक आवश्यकताओं के आधार पर उनके साथ अलग व्यवहार करते थे। स्वामी प्रेमानंद बहुत मृदुभाषी थे और कभी भी किसी से बहस नहीं करते थे क्योंकि उन्होंने स्वामी रामकृष्ण परमहंस की इस शिक्षा को आत्मसात कर लिया था कि ईश्वर सबके हृदय में निवास करता है। प्रेमानंद ने कभी किसी को नाराज नहीं किया।

एक बार काली मंदिर में एक बिच्छू मिला । रामकृष्ण परमहंस ने प्रेमानंद को बुलवाकर बिच्छू को मारकर बाहर फेंकने का निर्देश दिया। परन्तु प्रेमानंद जी ने बिच्छू को जीवित छोड़ दिया और उसे घास में फेंक दिया। इससे रामकृष्ण क्रोधित हो गए। उन्होंने प्रेमानंद को सलाह दी कि यदि भगवान बिच्छू के रूप में प्रकट होते हैं, तो उनके साथ अलग तरह से व्यवहार किया जाना चाहिए। आप जहरीले सांपों और बिच्छुओं से प्यार नहीं कर सकते।

यह कहानी हमें सिखाती है कि संभावित खतरनाक स्थिति से कैसे निपटा जाए। जब कोई बाघ, शेर और सांपों से घिरे जंगल में फंसे हो, तो क्या अहिंसा और प्रेम का मार्ग चुन सकता है? अगर कोई बाघ, शेर और सांप से प्यार करने लगे तो उसका परिणाम क्या हो सकता है ये आसानी से समझा जा सकता है ।

सवाल ये नहीं है कि ये आदर्श जो की भगवान बुद्ध और महात्मा गाँधी जी द्वारा सुझाये गए अपने आप में उपयोगी है या नहीं ? सवाल ये है कि क्या ये आपके अध्यात्मिक और मानसिक विकास के लिए सहयोगी है ? क्या आप इन शिक्षाओं का अनुपालन करने में समर्थ है ?

महात्मा गांधी और गौतम बुद्ध की शिक्षाओं पर चलकर कोई अपना जीवन नहीं जी सकता। वे लोग ऐसी स्थिति में जीवित रह सकते थे क्योंकि उनकी आभा इतनी मजबूत थी कि ये जानवर भी बुद्ध को नुकसान पहुंचाने के लिए कुछ नहीं कर सकते थे।

ऐसा कहा जाता है कि महर्षि रमण बाघों के साथ रहते थे। उन्होंने सांपों से भी दोस्ती की। लेकिन, क्या एक सामान्य मनुष्य के लिए ऐसे गुण विकसित करना संभव है? अहिंसा, प्रेम और सहानुभूति के रास्ते पर चलना चाहिए, लेकिन सभी परिस्थितियों में नहीं, जैसा कि ये महान लोग चला करते हैं।

उन्होंने अपना समय ऐसी आध्यात्मिक ऊंचाइयों को विकसित करने और पोषित करने में लगाया। उस ऊंचाई तक पहुंचे बिना उनकी नकल करना खतरनाक है। बुद्ध के मार्ग को समझना सीखना चाहिए और जितना हो सके उस पर चलने का प्रयास करना चाहिए। लेकिन उसका अक्षरशः पालन तब तक नहीं करना चाहिए जब तक व्यक्ति उस शिखर पर नहीं पहुंच जाता।

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित

Language: Hindi
329 Views
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