गर भिन्नता स्वीकार ना हो
गर भिन्नता स्वीकार ना हो
गर धर्म जाति रंग आदि एकता आधार ना हो।
क्या भला हो देश का गर भिन्नता स्वीकार ना हो।
देश के उत्थान में व्यवधान है बाधा गरीबी।
धर्म जाति भिन्नता ना , विघ्न है ब्याधा गरीबी।
किन्तु इसका ज्ञान हो हाँ ,मेधा का अपमान हो ना।
धर्म जाति प्रान्त आदि , एकता प्रतिमान हों हाँ।
ज्ञान, बुद्धि, प्रज्ञा शुद्धि, आ सभी में हम जगाएँ।
सूत्र हो अभिन्नता का ,साथ डग मिलकर बढ़ाएँ।
इस वतन के देशवासी, प्रांत भिन्न वेश भाषा भाषी,
रूप जाति रंग भिन्न अब आ कहें पर एक हैं सब?
धर्म जाति तोड़ने का अब यहाँ हथियार ना हो।
क्या भला हो देश का गर भिन्नता स्वीकार ना हो।
अजय अमिताभ सुमन