गर छोटा हो तुम छोटा
गर छोटा हो तुम छोटा,
गर तुमको कुछ ने रोका।
गर तुमको कुछ ने टोका
ना समझो खुद को खोटा।
जीवन में आगे बढ़ने से,
आखिर किसने तुमको रोका?
नहीं जरूरी हर लघुता का,
एकमात्र हीं भय परिचय हो।
नही जरूरी वृहद काया ,
का लघुता पर केवल जय हो।
ताड़वृक्ष लंबा होता है,
खंबा सा दृष्टित होता है।
पर इसपे गिद्ध हीं बसता है,
ना फल ना छाया देता है।
गज की महाकाया सी काया,
तन जिराफ ने लंबा पाया।
चीता इन दोनों से छोटा,
पर चीता से हीं भय होता।
छोटी छोटी चीजों में भी,
अतुलित शक्ति सोती रहती।
छोटी छोटी चीजें भय का,
कारण किंचित होती रहती।
शिव जी की आँखे हैं छोटी,
पर इनसे दुनिया हैं डरती।
एक कीटाणु एक विषाणु,
जीवन हारक ये जीवाणु।
सबके सब हैं छोटे होते,
नयनों को दृष्टित ना होते।
फिर भी भय से सब डरते हैं,
जीवन कितनों के हरते हैं।
छोटेपन से क्षय ना होता,
प्रेम प्रतीति लय भी होता।
उज्जवलता का भी कारण ये,
सुंदरता भी मनभावन ये।
माथे की बिंदियाँ भी छोटी,
गालों की डिंपल भी छोटी,
छोटे छोटे तिल भी सोहे,
छोटे नैना भी मन मोहे।
रातों को बरगद के जुगनू,
जगमग करते सारे जुगनू।
चावल के दाने भी छोटे,
पर दुनिया को खाना देते।
सरसों की कलियाँ भी छोटी ,
मटर की वल्लरियाँ छोटी।
छोटा हीं मोती का माला,
छोटा हीं तो कंगन बाला।
बादल की बूँदें भी छोटी,
रिमझिम बारिश हैं कर देतीं।
फूल, फल और कलियाँ पत्ते,
जिनसे सब तरुवर हैं हँसते।
सब के सब छोटे हैं सारे ,
पर सबको लगते हैं प्यारे।
फिर क्यों तुम सारे रोते हो?
छोटेपन पर सुख खोते हो।
बरगद के नभ को छूने से,
तरकुल के ऊँचे होने से,
ना अड़हुल शोक मनाता है,
बरगद पे ना अकुताता है।
ना खुद पे ये शर्माता है,
उतना हीं फूल खिलाता है,
उतना खुद पे इतराता है।
बरगद ऊंचा तो ऊंचा है,
ना अड़हुल समझे नीचा है।
बरगद की अपनी छाया है,
अड़हुल की अपनी माया है।
सबकी अपनी आप जरूरत,
नहीं फर्क कैसी काया है।
छोटा तन तो फिर क्या गम है,
ना होती कोई खुशियाँ कम हैं।
तुम उतना हीं गा सकते हो,
तुम उतना हीं खा सकते हो।
तुम उतना हीं जा सकते हो,
तुम उतना हीं पा सकते हो।
तुम उतने हीं सो सकते हो,
तुम उतने हीं हो सकते हो।
मिट्टी सा तो तन होता है,
छोटा तो बस मन होता है।
मैंने बस इतना जाना है,
मैंने बस इतना माना है।
तन लंबा पर मन छोटा हो,
नियत में गर वो खोटा हो।
ऐसा हीं छोटा होता है,
ऐसा हीं छोटा होता है।
ऐसा हीं खोटा होता है।