गर्व और दंभ
गर्व और दंभ
खोद डालो तुम मेरे पांव के नीचे की मिट्टी,
तुमको खुशी जिससे मिले वो सब कर डालो।
बढ़ा दो रफ्तार रिश्तों को जड़ से मिटाने की,
बेचकर संबंध सब , जमा तुम धन कर डालो।।
कह दो सबने जो किया वह कर्म था उनका,
है नहीं किया एहसान वह उनका तो धर्म था।
है नहीं विश्वास मेरा कर्म का बदला चुकाने में,
होगा शर्मीला उनका गुरु पर मेरा तो बेशर्म था।।
तुम बहाने ढूंढ लोगे खुद के हर अपकर्म की,
झूठ चोरी और बेशर्मी में हो जो डिप्लोमा किए।
तुमहो शातिर अपनी खातिर पाप कोई भी करोगे,
पर बतादे साथ सच्चा सगा अपना तेरा कैसे जिए।।
जश्न में अपकर्म के खुद को भूला बैठा है तू,
तू समझ बैठा है कि आसानी से तू मर पाएगा।
सत्य है खामोश तो खुद को विजेता समझ बैठा,
पांव की मिट्टी मेरी से तेरा कफ़न ढक जाएगा।।