गर्मी से बुरा हाल
बढ़ा है ताप सूरज का, गगन से आग ही बरसे।
भलाई है इसी में अब,कहीं निकलें नहीं घर से।
जलाती है तपिश ऐसी, कि रेगिस्तान की राहें-
मिले पानी न पीने को, गला इक बूँद को तरसे।
बढ़ा है ताप सूरज का, गगन से आग ही बरसे।
भलाई है इसी में अब,कहीं निकलें नहीं घर से।
जलाती है तपिश ऐसी, कि रेगिस्तान की राहें-
मिले पानी न पीने को, गला इक बूँद को तरसे।