गर्मी के दोहे
************* गर्मी के दोहे ***********
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जून तो गर्म मास है , होत बुरा सा हाल।
लाख कोशिशें शीत की,गलती न कभी दाल।।
गर्म हवा चलती रहे , दिखता तपा हर पथ।
भीगा – भीगा तन-बदन,पसीनें में लथ – पथ।।
लू की लपट लपेट से , तन – मन है बेचैन।
दिन तो कैसे कट चले , कैसे काली रेन।।
खग-नर नज़र कहीं नही ,बैठें डाली ठौर।
अजब-गजब मौसम हुआ,चले न कोई जोर।।
मनसीरत मन बांवरा , आराम है हराम।
पापी पेट सवाल है , करनी कीरत काम।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)