गर्मी (कुण्डलिया छंद)
गर्मी में अब लू चले, चले संग में धूल।
पीपल पात सिमट गये, सूख रहे हैं फूल।
सूख रहे हैं फूल, है धूमिल फसली काया।
तेज रवि ने देखो, है सन्नाटा फैलाया।
कहे सलाह अशोक, बनिये धरा के धर्मी।
वृक्षों की रक्षा करें, तभी कम होगी गर्मी।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.