गर्मी और नानी का आम का बाग़
गर्मी आई, छुट्टियों का पल,
नानी के घर चलें, दिल में उमंगों का हलचल।
नानी का बाग़, आमों की बहार,
मीठे फलों से भरा, खुशियों का संसार।
हरे-भरे पेड़ों की लंबी कतार,
हर डाल पर लटके आम, मनोहारी उपहार।
दशहरी, लंगड़ा और हापुस के आम,
केसर, चौसा, तोतापुरी का श्याम।
नानी बोलीं, “चलो बाग़ में चलें,
आम तोड़ें, मिलकर आनंद मचाएं।”
गर्मी की धूप में, बाग़ की ठंडी छाँव,
पेड़ों की छत्रछाया, जैसे सुकून का गाँव।
तोतों की टोली, गिलहरियों का झुंड,
आम के बाग़ में, सबका संगम अखंड।
डालों पर झूलें, हंसी-खुशी में रमे,
नानी के संग, बाग़ की राहों में घूमें।
पेड़ के नीचे बिछाएं चादर,
नानी की कहानियों में खो जाएं, सारा घर।
कच्चे आम का अचार बनाएं,
मीठे आम का रस, सबको लुभाएं