गर्दिश में सितारा
किन गर्दिशों में खोया है
आख़िर मेरा सितारा
मुझे बादलों से झांक कर
कोई तो दे इशारा …
(१)
लहरों में मेरी कश्ती
डोलेगी और कितना
दूर-दूर तक अंधेरा
दिखता नहीं किनारा…
(२)
समय की ठोकरों से
जब पैर डगमगाएं
तो मेरा दिल तड़पकर
ढूंढने लगे सहारा…
(३)
जो बाग मैंने सींचा था
अपने खून-ए-दिल से
उसमें कांटे ही मिले हैं
पतझड़ हो या बहारा…
(४)
बदला मुझे वफ़ा का
लोगों ने दिया ऐसे
कोई कहे दीवाना
कोई कहे आवारा…
(५)
इस बेकदर जहां से
हाय, मैं तो बाज आया
मुझे ले चलो यहां से
कहीं दूर अब ख़ुदारा…
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Shekhar Chandra Mitra
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