Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Nov 2021 · 3 min read

गरीब आदमी नहीं दिखने की मजबूरी

गरीब आदमी नहीं दिखने की मजबूरी का दर्द सब नहीं समझ सकता है। क्योंकि यह लौकिक नहीं है। गरीब, मजदूर, ऐसा संवेदनशील शब्द है जिसको बोलकर मानो हर कोई संवेदनशीलता की कक्षा में सबसे अग्रिम पंक्ति में बैठकर बिना प्रश्न पूछे ही उत्तर देने की होर में शामिल हो धारा प्रवाह बोलने के अपने हुनर को इस तरह से प्रदर्शित करता है कि यदि ओ आज चूक गया तो फिर ये मौका उसे मिलने वाले मेडल से वंचित ना कर दे।

मैं आज ऐसे वर्ग की तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं जो गरीब तो है, लेकिन मजबूरी में, न अपने को गरीब बोल पता है और ना ही ओ अपने फटे कपड़ो को दिखा ही सकता है। ऐसा नहीं की उसका कपड़ा फटा नहीं है, लेकिन ढक कर जाहिर नहीं करना चाहता है। उसका अंतः वस्त्र फटा होता है लेकिन एक शर्ट और एक पैंट के अंदर ढका होता है। इत्तेफाक से तार पर उसके सूख रहे चड्डी या बनियान पर यदि आपकी नजर पड़े और उसमें उपजे सहस्त्र छिद्र मानो चीख चीख कर कह रहे हों कि गरीबी की युद्ध में ओ भी सबसे आगे रहकर सारी गोलियों को अकेले ही झेला है और कभी उफ तक नहीं बोला, तब जाके आपको कुछ एहसास हो। रो तो वो भी रहा है, लेकिन आप देख नहीं पाएंगे। दर्द तो उसको भी है लेकिन आप महसूस नहीं पाएंगे और यदि आप महसूस कर भी ले तो आप लिख या बोल नही पाएंगे क्योंकि आपको संवेदनशीलता वाला सर्टिफिकेट को खोने का डर रहेगा।

जरा उसके बारे में सोचिए: जो सेल्स मैन है; लेकिन एरिया मैनेजर बोलके घूमता है। बंदे को भले आठ हजार मिलता हो लेकिन गरीबी का प्रदर्शन नहीं करता है।

सेल्स एजेंट के बारे में सोचिए: जो मुस्कुराते हुए, आप कार की एजेंसी पहुंचे नहीं कि कार के लोन दिलाने से लेकर कार की डिलीवरी तक, मुस्कुराते हुए, साफ़ सुथरे कपड़ो में आपके सामने हाजिर रहता है। मैंने संघर्ष करते, वकील, पत्रकार, एजेंट, सेल्स मैन, छोट मझौले दुकानदार, प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले क्लार्क, बाबू, धोबी, सैलून वाले आदि देखे हैं।

ये लोग भले ही चड्डी-बनियान फटे हो मगर अपनी गरीबी को प्रदर्शित नहीं करते हैं और ना ही इनके पास मुफ्त में चावल पाने वाला राशन कार्ड है ना ही जनधन का खाता। यहां तक कि गैस की सब्सिडी भी छोड़ चुके हैं। ऊपर से मोटर साईकिल की किस्त या घर का किस्त ब्याज सहित देना है। बेटा बेटी की एक माह का फीस बिना स्कूल भेजे ही इतनी देना है, जितने में दो लोगो का परिवार आराम से एक महीना खा सकता है, परंतु गरीबी का प्रदर्शन न करने की उसकी आदत ने उन्हें सरकारी स्कूल से लेकर सरकारी अस्पताल तक से दूर कर दिया है।

ऐसे ही टाईपिस्ट, रिसेप्शनिस्ट, आफिस ब्वॉय जैसे लोगों का वर्ग है।

ऐसे ही एक वर्ग घर-घर जा कर पूजा पाठ करके आजीविका चलाने वाले ब्राम्हणों का है। लॉक डाउन के कारण आे वर्ग भी बुरी तरह से प्रभावित है जो कभी दुनियां को वैभव का आशीर्वाद देता था आज सामान्य जीवन भी नहीं जीने को मजबूर है। इन लोगो का दर्द किसी की दृष्टि में नहीं है।

ये वर्ग या लोग फेसबुक पर बैठ कर अपना दर्द भी नहीं लिख सकते। गरीब आदमी नहीं दिखने की मजबूरी जो ठहरी। हालांकि सुनेगा भी कौन…✍️

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 4 Comments · 200 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
💐प्रेम कौतुक-537💐
💐प्रेम कौतुक-537💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
पुच्छल दोहा
पुच्छल दोहा
सतीश तिवारी 'सरस'
बाल कविता मोटे लाला
बाल कविता मोटे लाला
Ram Krishan Rastogi
झोली मेरी प्रेम की
झोली मेरी प्रेम की
Sandeep Pande
कारण कोई बतायेगा
कारण कोई बतायेगा
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
सिनेमा,मोबाइल और फैशन और बोल्ड हॉट तस्वीरों के प्रभाव से आज
सिनेमा,मोबाइल और फैशन और बोल्ड हॉट तस्वीरों के प्रभाव से आज
Rj Anand Prajapati
हरषे धरती बरसे मेघा...
हरषे धरती बरसे मेघा...
Harminder Kaur
सौ बार मरता है
सौ बार मरता है
sushil sarna
#मुक्तक
#मुक्तक
*Author प्रणय प्रभात*
सत्य की खोज
सत्य की खोज
dks.lhp
इश्क अमीरों का!
इश्क अमीरों का!
Sanjay ' शून्य'
वह दे गई मेरे हिस्से
वह दे गई मेरे हिस्से
श्याम सिंह बिष्ट
*राधा जी आओ खेलो, माधव के सॅंग मिल होली (गीत)*
*राधा जी आओ खेलो, माधव के सॅंग मिल होली (गीत)*
Ravi Prakash
मित्रता तुम्हारी हमें ,
मित्रता तुम्हारी हमें ,
Yogendra Chaturwedi
जल संरक्षण
जल संरक्षण
Preeti Karn
#दिनांक:-19/4/2024
#दिनांक:-19/4/2024
Pratibha Pandey
**** मानव जन धरती पर खेल खिलौना ****
**** मानव जन धरती पर खेल खिलौना ****
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
निरुपाय हूँ /MUSAFIR BAITHA
निरुपाय हूँ /MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
धूमिल होती पत्रकारिता
धूमिल होती पत्रकारिता
अरशद रसूल बदायूंनी
"सोज़-ए-क़ल्ब"- ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
दोहा
दोहा
दुष्यन्त 'बाबा'
"किताबें"
Dr. Kishan tandon kranti
आधुनिक बचपन
आधुनिक बचपन
लक्ष्मी सिंह
*मुश्किल है इश्क़ का सफर*
*मुश्किल है इश्क़ का सफर*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
खोखली बुनियाद
खोखली बुनियाद
Shekhar Chandra Mitra
मी ठू ( मैं हूँ ना )
मी ठू ( मैं हूँ ना )
Mahender Singh
शिवोहं
शिवोहं
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
उम्र न जाने किन गलियों से गुजरी कुछ ख़्वाब मुकम्मल हुए कुछ उन
उम्र न जाने किन गलियों से गुजरी कुछ ख़्वाब मुकम्मल हुए कुछ उन
पूर्वार्थ
"Always and Forever."
Manisha Manjari
2982.*पूर्णिका*
2982.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Loading...