“गरीबों की दिवाली”
“गरीबों की दिवाली”
ना हीं नए कपड़े हैं,
ना ही फटाकें हैं।
और ना ही जलाने को दीपक है,
गरीबों की इस दिवाली में ,
बस दो वक्त की रोटी है।
दूसरों की खुशियांँ देख कर,
वे भी दिवाली की खुशियों में सरीक हैं।
….✍️ योगेन्द्र चतुर्वेदी