गरीबी
एक छोटे से गांव की एक छोटी से परिवार की एक छोटी सी कहानी है इस छोटे से परिवार में एक मदन नाम का व्यक्ति था जिनका परिवार बहुत ही गरीब व लाचार था जो एक समय का खाना खाते थे तो दूसरी समय के खाने के बारे में सोचना पड़ता था। इस तरीके के सिलसिला से परिवार बहुत मुश्किल स्थिति से गुजर रहा था। तब मदन के पिताजी ने किसी व्यक्ति से बात की है और बोले कि मेरे बेटा को भी आप ले जाइए कहीं काम धरा दीजिएगा जिससे 2 रुपया कमाएगा और घर लाएगा तो उससे हम लोगों का भोजन चलेगा।
मदन तीन भाई थे लो और तीन भाई में सबसे छोटे मदन था। उस समय मदन का आयु लगभग 15 -16 वर्ष होगा। मदन ने उस व्यक्ति के साथ कमाने के लिए प्रदेश चला गया, वहां जाने के बाद उस व्यक्ति ने मदन को काम दिलवा दिया, काम ऐसा था की कभी मदन अपने घर पर ऐसा काम किया नहीं था पर वह बाहर आया था इसीलिए इस काम को कर रहा था। काम था पशुओं का गोबर उठा कर फेंकना इस स्थिति में वे करे तो क्या करें? ऐसा सोच भी नहीं सकता था कि मुझे ऐसा काम करना पड़ेगा बाहर में आकर के। अब तो यह मजबूरी बन चुकी थी इसीलिए इस काम को करना पड़ा रहा था। वैसे में मदन इस काम को करना नहीं चाहता था। खैर बाहर आया था तो सारी दिक्कतों का सामना करते हुए मदन ने कुछ दिन इस काम को किया लेकिन कुछ दिन में ही उनका दोनों हाथ सर गया था। लग रहा था जैसे हाथ में कोड़ फुट गया है। इस तरह से दोनों हाथों में घाव हो चुका था।
मदन इस काम को छोड़कर के घर आना चाहता था पर आए तो कैसे आए? उसके पास पैसा नहीं था। क्योंकि जहां काम करता था वहां महीना पूरा हुआ था नहीं। जिसके चलते उसको वहां से पैसा मिल नहीं सकता था और महीना पूरा करने के चक्कर में पढ़ता तो और उनकी तबीयत खराब हो सकती थी। इसलिए उन्होंने फिर उस व्यक्ति से संपर्क किया जिन्होंने इन को काम पर लगाया था। वह भी व्यक्ति उसी एरिया में काम करता था। उससे घर आने के लिए कुछ पैसा मांगा। उस व्यक्ति ने मदन को दो रूपया दिया।
उस दो रुपया को लेकर के मदन ने घर की ओर चला। जब घर की ओर चला तो डेढ़ रुपया उनका किराया भाड़ा में खर्च हो गया और भूख भी ज्यादा लग चुकी थी और जहां पहुंचा था वहां से लगभग 15 किलोमीटर दूर उनका घर था और वह 15 किलोमीटर रेत एरिया था। जहां ना कहीं पानी मिलता और नहीं आने जाने की सवारी, पूरे बालू से भरा हुआ वह क्षेत्र था। अब मदन के पास मात्र 50 पैसे बचे थे उन्होंने उस 50 पैसे से चिउड़ा खरीदा और बगल में ही चौक पर शराब की बोतलें बिगी हुई थी। वह इंग्लिश शराब की बोतल थी। उस बोतल को उठाया, साफ़ किया और पानी पीने के लिए उसमें पानी भरा और फिर उस चिउड़ा को उन्होंने गमछा में बान्ध लिया और बोतल में पानी लिया और वहां से अपने घर की ओर चला। चलते चलते रास्ते में वो मुट्ठी भर चिउड़ा उठाता था और फाकते हुए पूरे रास्ता आ रहा था और जहां कहीं प्यास लगता था तो उस पानी को पिया करता था।
उस रेत खेत में कुछ मजदूर काम कर रहे थे। उन मजदूरों को लग रहा था कि देखो उसके शरीर पर कपड़े नहीं है और कितना पियक्कड़ है कि कुछ गुठली में रखा हुआ है और उसे फाकते हुए इंग्लिश शराब पीते हुए आ रहा है लेकिन बेचारा मदन करे तो क्या करें? उसकी पेट तो भूख से जल रही थी और वह बेचारा चिउड़ा खाता हुआ और पानी पीता हुआ आ रहा था लेकिन लोगों को लग रहा था कि वह शराबी है और शराब पीते हुए आ रहा है। सच में भोजपुरी में एक कहावत है कि “कलवार के बेटा भूखे मूवे, लोग कहे की दारू पीके मतवाला बा” वही परिस्थिति मदन के सामने आई थी।
लेखक – जय लगन कुमार हैप्पी ⛳