गरीबी हटाओं बनाम गरीबी घटाओं
गरीबी की सरल परिभाषा है किसी व्यक्ति के जीवनयापन के लिए मूलभूत आवश्यकताओं का अभाव होना। गरीबी के कारण व्यक्ति अभावग्रस्त रह कर समुचित विकास नहीं कर पाता है और एक कष्टमय जीवन जीता है इसलिए गरीबी को अभिशाप भी कहा गया है। गरीबी के प्रमुख कारणों में से एक है- मूलभूत आवश्यकताएं, सीमित संसाधन, अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि, आय और पूंजी का असमान वितरण और शिक्षा का अभाव। मेरे अनुसार गरीबी का एक और प्रमुख कारण है सत्ता संचालन या गवर्नेंस की क्षमता।
भारत को आजादी के साथ गरीबी भी विरासत में मिली। तब अनेकों चुनौतियों के साथ गरीबी दूर करना भी एक बहुत बड़ी चुनौती थी। प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी ने पंचवर्षीय योजनाओं का श्रीगणेश कर देश को विकास की ओर अग्रसर करने की बुनियाद रखी। उद्योग-धंधे, कल कारखाने, शिक्षण संस्थान, स्वास्थ्य, कृषि और आधारभूत ढांचा तैयार करने को प्राथमिकता दी गई। चौथी पंचवर्षीय योजना असफल रहने के कारण गरीबी मुख्य चुनावी मुद्दा बन कर उभरी। तब 1971 के लोकसभा चुनावों में श्रीमती इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओं का नारा दिया और पांचवीं पंचवर्षीय योजना में गरीबी उन्मूलन के लिए योजनाएं बनाई।
तब से कितनी योजनाएं बनीं, कितने आम चुनाव हुए पर गरीबी नहीं हटी। क्यों? आखिर गरीबी हटी क्यों नहीं? कारण…? गरीबी हटाओं नारा ही सटीक नही था। सही मायने में देश से गरीबी कभी हटाई नही जा सकती हां घटाई जरुर जा सकती है। गरीबी पूरी तरह से हटाई नही जा सकती क्योंकि समय-समय पर लोग गंभीर लंबी बीमारी के चलते, कारोबार-व्यापार में घाटे, लड़ाई-मुकदमे और अनेकों नुकसान-आपदाओं के चलते गरीब बनते रहते हैं। इसलिए गरीबी को पूर्णतः हटाना आसान नहीं है जबकि गरीबी हटाने से आसान है गरीबी घटाना और गरीबी हटाओ नारे से कहीं अधिक व्यवहारिक नारा है – गरीबी घटाओं न कि गरीबी हटाओं।
कुछ दिनों पहले एनएसएसओ(NSSO) की आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट आई थी जिसमें यह दांवा किया गया था कि देश में अब केवल 5% लोग ही गरीबी रेखा के नीचे रह गए है यानी 140 करोड़ की जनसंख्या में लगभग 7 करोड़ लोग गरीब हैं। और पिछले दस वर्षों में मल्टी डायमेंशनल पावर्टी (बहुआयामी निर्धनता) काफी हद तक कम हुई है। ये तो आंकड़े हैं यहां मैं आंकड़ों की विश्वसनीयता, सैम्पल यूनिवर्स, सैम्पल साइज, सर्वे मेथडोलाजी और मार्जिन आंफ इरर पर नहीं जाऊंगा। जैसा कि एक पर्सपेक्टिव स्टडी की अपनी खूबीयां और कमीयां होती हैं लेकिन इम्परिकल स्टडी यानि अनुभवजन्य स्टडी में हम वास्तविकता को पूरी सम्पूर्णता में देखते है। जिसमें आंकड़ों की बाजीगरी की गुंजाइश कम होती है। हम अपनी रोजाना जिंदगी में इधर-उधर जाते हैं सभी तरह के लोगों से मिलते हैं। मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया पर भी नजरें बनाए रखते हैं पर इतनी गरीबी अब नहीं दिखाई देती है लोगों के रहन-सहन, खान-पान और परचेजिंग पावर( क्रय शक्ति) को देखते हुए यह लगता है कि देश में अब अब्जेक्ट पावर्टी (भीषण गरीबी) खत्म हो गई है इसलिए हम दांवे के साथ कह सकते हैं कि देश में बेशक गरीबी कम हुई है अमीरी बढ़ी है पर इसके साथ ही इकानोमिक डिस्पैरिटी यानि आर्थिक असमानता भी बढ़ी है आज गरीबी घटाओं के नये नारे के साथ-साथ अमीरी-गरीबी की खाई को भी पाटने वाले एक नये नारे की भी दरकार है। जैसा कि मैंने सरकारों की नीति, नियति, कार्यक्षमता और कार्यकुशलता को भी गरीबी बढ़ने और गरीबी घटाने का मुख्य कारण माना है गवर्नेंस का स्तर, प्राथमिकताएं और लगातार फोकस गरीबी घटाने में अहम भूमिका निभाते हैं तो निष्कर्ष में हमारी इम्परिकल स्टडी यह बताती है कि गरीबी घटाने में सरकार ने बहुत हद तक सफलता पाई है इस दिशा में अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
-©जीवनसवारो। मार्च २०२४.