गरीबी बनी गुणवता पूर्वक शिक्षा की राह में रुकावट
गरीबी बनी गुणवता पूर्वक शिक्षा की राह में रुकावट
भारत सरकार ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम द्वारा शिक्षा को मूलभूत आवश्यकता माना है। यह सरकार का दायित्व है कि वह बच्चों की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दें और शिक्षा के प्रचार प्रसार में अहम भूमिका निभाये । वर्तमान में शिक्षा पद्धति का स्वरूप ही बदल रहा है। आज की शिक्षा मानव मूल्यों की अपेक्षा भौतिकवाद पर अधिक जोर देती है ।90% या I00% अकं प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को ही सफल विद्यार्थी माना जाता है। कम अंक प्राप्त करने विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए अच्छे स्कूल व कॉलेजों में दाखिला भी नहीं मिल पाता। सवाल यह उठता है कि क्या प्रत्येक बच्चे को वर्तमान शिक्षा पद्धति की शिक्षा मिल रही है या नहीं ? आज प्राइवेट स्कूलों और कॉलेजों में फीस इतनी अधिक बढ़ गई है कि समाज के लगभग 50% लोग अपने बच्चों की पढ़ाई का खर्च वहन नहीं कर सकते । शिक्षा के क्षेत्र में अधिक से अधिक पैसा कमाने के लिए इन स्कूलों की अंधाधुंध होड़ लगी हुई है। एक दूसरे स्कूल से श्रेष्ठ दिखाने व पैसा कमाने की होड़ आए दिन अखबारों की सुर्खियां बनी हुई है। निजी स्कूल अपने विज्ञापनों के माध्यम से हर दिन अभिभावकों को अपनी और आकर्षित करने का प्रयास कर रहे है। यहां तक की शिक्षा का स्तर बताने की अपेक्षा स्कूली भवन साज – सज्जा व अन्य सुविधाओं पर अधिक बल दिया जाता है ।कहने को तो शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार एवं उसके माता-पिता का दायित्व लेकिन जो माता पिता दिन भर सिर्फ मजदूरी करके या खेती करके पूरे परिवार का पालन पोषण करते है वे अपने बच्चों को इन प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा किस तरह दिलाए । बढ़ती हुई फीस का बोझ माता- पिता पर असहनीय पीड़ा की तरह बढ़ रहा है। अपने बच्चों की फीस भरने के लिए गरीब माता – पिता बैंकों में साहूकारों से भारी कर्ज लेकर एक भारी मानसिक तनाव में है। इसके अलावा जो अभिभावक गरीबी के कारण बच्चों को इन निजी स्कूलों में नहीं भेज पाते उनके बच्चे वर्तमान की प्रतिस्पर्धा के दौर में पीछे रह जाते हैं गरीबी उन बच्चों की उन्नति की राह में एक रुकावट बन जाती है। सरकारी स्कूलों की संख्या का धीरे- धीरे कम होना भी गरीब बच्चों को शिक्षा से दूर ले जाने का एक मुख्य कारण माना गया है । आज कई सरकारी संस्थानों में छात्रों की संख्या का अनुपात धीरे-धीरे कम हो रहा है कारण यह नहीं है कि वहां अध्यापकों में योग्यता की कमी है बल्कि प्रतिस्पर्धा के दौर में प्राइवेट स्कूल बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ अनेक खेलकूद नाच गानो व प्रतियोगिताओं में हिस्सेदारी दिलाते है व उन्हें तकनीकी शिक्षा प्रदान करने में दक्षता रखते हैं । शिक्षा का क्षेत्र धीरे-धीरे एक बड़े व्यापार का रूप ले रहा है। अधिकतर व्यापारी अपना पैसा शिक्षण संस्थानों में लगाकर अपना नाम कमा रहे है वहीं दूसरी ओर सरकार भी अधिक से अधिक औद्योगीकरण व शहरीकरण के साथ- साथ प्राइवेट स्कूलों की बढ़ती हुई संख्या से अत्यंत खुश हैं क्योंकि सरकार को स्कूलों पर अत्यधिक खर्च करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। राज्य सरकारों को यही मानना है कि शिक्षा किसी न किसी माध्यम से बच्चों तक अवश्य ही पहुंच रही है। लेकिन सरकार में बैठे प्रतिनिधि इस बात से पूरी तरह अनजान है कि गरीब माता – पिता के लिए अपने बच्चों को शिक्षा दिलाना अत्यंत कठिन हो गया है । आज शहर में सैकड़ों की संख्या में प्राइवेट स्कूल खुल चुके हैं जबकि सरकारी स्कूलों की संख्या मात्र दो या तीन ही रह गई है। गरीब माता – पिता अपने बच्चों को वह सभी सुविधाएं प्रदान नहीं कर सकते जो अमीरों के बच्चे उच्च शिक्षण संस्थानों में प्राप्त कर रहे हैं । वर्तमान में राज्य सरकारें मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, कम दामों में घर जैसी अनेक सुविधाओं की घोषणा तो कर रही हैं लेकिन गरीब बच्चे आज भी शिक्षा से वंचित है । सरकार द्वारा लागू किए गए नियम के तहत कुछ प्राइवेट स्कूलों ने तो गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए सीटें निर्धारित कर रखी है लेकिन प्रभावशाली तरीके से इस नियम को लागू किए जाने के अभाव में आज भी कई निजी स्कूलों ने इन नियमों को दरकिनार कर दिया है जिससे उन क्षेत्रों के बच्चे आज भी गुणवत्ता पूर्वक शिक्षा से वंचित रह रहे हैं। सरकार का यह दायित्व है कि शिक्षा को जन – जन तक पहुंचाकर गरीब बच्चों की उत्थान में अपनी अहम भूमिका निभाएँ।