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20 Aug 2022 · 1 min read

गरीबी पर लिखे अशआर

कोई गुरबत समझ नहीं सकता ।
भूख हिम्मत निचोड़ देती है ।।

सारे इलज़ाम इसके माथे पर ।
मुफ़लिसी बे’ गुनाह नहीं होती ।।

जानता है वही जो इसको ढोता है।
कितना भारी गरीबी का बोझ होता है ।।

कोई हमदर्द हो गरीबी का ।
कोई सिल दे लिबास गुरबत का ।।

वो हक़ीक़त पसंद होती है।
मुफ़लिसी ख़्वाब थोड़ी देखेगी ।।

राहतें ज़िंदगी को मिल जाती।
भूख बे’हिस अगर नहीं होती ।।

ये एहसास-ए-महरूमी
तेरी क्यों नहीं जाती ।
ऐ ग़रीबी तेरी सूरत
बदल क्यों नहीं जाती ।।

बात अच्छी है बस अमीरी की।
तुम गरीबी का ज़िक्र मत करना ।।

डॉ फौज़िया नसीम शाद

Language: Hindi
Tag: शेर
10 Likes · 702 Views
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