गरीबी पर लिखे अशआर
कोई गुरबत समझ नहीं सकता ।
भूख हिम्मत निचोड़ देती है ।।
सारे इलज़ाम इसके माथे पर ।
मुफ़लिसी बे’ गुनाह नहीं होती ।।
जानता है वही जो इसको ढोता है।
कितना भारी गरीबी का बोझ होता है ।।
कोई हमदर्द हो गरीबी का ।
कोई सिल दे लिबास गुरबत का ।।
वो हक़ीक़त पसंद होती है।
मुफ़लिसी ख़्वाब थोड़ी देखेगी ।।
राहतें ज़िंदगी को मिल जाती।
भूख बे’हिस अगर नहीं होती ।।
ये एहसास-ए-महरूमी
तेरी क्यों नहीं जाती ।
ऐ ग़रीबी तेरी सूरत
बदल क्यों नहीं जाती ।।
बात अच्छी है बस अमीरी की।
तुम गरीबी का ज़िक्र मत करना ।।
डॉ फौज़िया नसीम शाद