गरम हुई तासीर दही की / (गर्मी का नवगीत)
ग़जब दाँद है
सही-सही की,
गरम हुई
तासीर दही की ।
बिजली गरम,
गरम पंखा है
कूलर फेंके
गरम हवाएँ ।
पूरब-पश्चिम,
उत्तर-दक्षिण
से आती हैं
उष्ण सदाएँ ।
छाती धक-धक
करे मही की ।
गरम हुई
तासीर दही की ।
नीम तपी,
महुआ गर्मीला,
जामुन,आम
सिमटती ठंडक ।
छुन-छुन करता
बहे पसीना,
कोल्ड-ड्रिंक्स
में सड़ती ठंडक ।
देखी,परखी,
सुनी,कही की ।
अजब दाँद है,
सही-सही की ।
नीबू तपता,
बेल दहकता,
गरम मुरब्बा,
पना गरम है ।
पत्ते सूखे,
रूठी छाया,
डाल चटकती,
तना गरम है ।
कोर-कसर है
रही-सही की ।
गरम हुई
तासीर दही की ।
०००
मही यानि धरती ।
सदाएँ यानि ध्वनियाँ ।
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।