*गम को यूं हलक में पिया कर*
गम को यूं हलक में पिया कर
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गम को यूँ हलक में पिया कर,
खुशियाँ बाँट कर यूँ जिया कर।
तरसे दो नयन ढूंढते हैँ हारे,
बांहों में जकड़ झट लिया कर।
मुश्किल सी घड़ी आ गई सिर,
कुछ हम पर रहम भी किया कर।
जब रिसने लगे याद है जहर बन,
दोनों हाथ तू खोलकर दिया कर।
मनसीरत गिला कुछ भी नहीं था,
दिल का हर ज़ख्म भी सिया कर।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)