गम और खुशी।
गम ही खुशी का बीज है।
पर! समझ नही पाता है।
गम के कारण ही सृजन साहित्य का ।
आज जो जग पढ़ पाता है।
खुशी जब मिल जाती है।
तब जाता अपने को भूल । फिर अकेला होकर रहता।
बन कर प्रति कूल।
गमों के गहरे जख्मों से ही तेरी खुशी का विस्तार है।
बिना गम के सूना है खुशी का संसार है।
गम को दुख न समझ ,यह समझ का फेर है।
समय के अनुसार ही होता है बस कुछ ही देर है।
सृष्टि की रचना भी जोड़े से होती है।
गम और खुशी भी समय के साथ होती है।