गमले में पेंड़
*गमले में पेंड़ *
बढ़ती जनसंख्या
आधुनिक जीवन शैली ने
नये नये आविष्कारों ने
बहुत कुछ बदला है।
कटते गये विशाल वृक्ष
छाया और फल देकर
जीवों के जीवनदाता रहे
खो गये विकास की आंधी में
धरती को बंजर बनाने वाले
पेड़ों की जबसे आमद हुई
फल, छाया, मानसून
के दिन लद गए।
बहुत कुछ बदला है
आनुवंशिक खोजों ने
सिमटते बागों का
पूजा के लिए
बरगद और पीपल का
विकल्प भी ढूंढ लिया है
नहीं हैं बागों में
क्या हुआ हमशक्ल तो है !
लघु काया ही सही
गमले में पूरी काया लेकर
समर्पित है
आज भी गमले में पेंड़।।
© मोहन पाण्डेय ‘भ्रमर ‘