अबकी बार
अबकी बार
नहीं जाने दूंगी
अपने पिया को
परदेश.
प्राणों से भी प्यारा है
अपना घर, अपना गाँव
अपना देश
अपना स्वदेश.
अकेले का जीवन भी
कोई जीवन है
न दर्द बांटा, न दुख
न बीतता कोई क्षण शेष.
क्या करते हैं
कैसे रहते हैं
कहाँ बताते हैं
न आता कोई सन्देश.
क्या कहूँगी
बढ़ते जिज्ञासु बच्चों को
उनके बिना कैसे दे पाऊँगी उन्हें
अच्छा परिवेश.
बैठूंगी उनके पास
बैठ कर बातें करुँगी/ समझाऊंगी
मना लुंगी उन्हें
देकर कसम अशेष.
❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️@रचना – घनश्याम पोद्दार
मुंगेर